मंगलवार, 16 मार्च 2010

साइकिल से दुनिया की राह

साइकिल का पहिया घूमता ही जा रहा था. वह दुनिया की भीड़ में चला जा रहा था. लोग उसे देखते और नजरअन्दाज कर देते थे. लेकिन जब उनके मिशन के बारे में जानते तो उनका खूब सहयोग करते थे. उसका मकसद था दुनिया भर की संस्कृतियों को जानना और भारतीय संस्कृति को दुनिया में प्रोत्साहित करना. सबसे मजेदार बात तो यह है कि दुनिया भर के देशों की यात्रा के दौरान वह स्कूल में पढ़ाते थे और उसी से अपना खर्चा चलाते थे और आगे की योजना बनाते थे.
84 देशों की यात्रा करने वाले 60 वर्ष के सुभाष पंछी सहगल एक बार फिर साइकिल से पूरी दुनिया घूमना चाहते है. इस बार वह 117 देशों की यात्रा करना चाहते है. सहगल पुरानी दिल्ली के तेलीवाड़ा के रहने वाले है. उन्होंने अपने सफर के दौरान ही अपने नाम के साथ पंछी लगाया. बचपन से ही साहित्य पढ़ने के बेहद शौकीन सहगल को पूरी दुनिया की यात्रा करने की प्रेरणा भी साहित्य पढ़कर ही मिली. सहगल कहते है, “ मैनें हिन्दी की किताब घुमक्कड़शास्त्र पढ़ी. उसका मुझ पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा. तभी से मैनें भारत की यात्रा शुरू की लेकिन वह मेरे लिए काफी नहीं था. इससे मुझमें और जानने की इच्छा जागी.”
सहगल आज भी लोगों के सहयोग को नहीं भूल पाते. सहगल बताते है कि 1972-80 तक के उनके इस यादगार सफर में दुनिया भर के कई भारतीय संगठनों ने उनकी मदद की. इस दौरान उन्होंने 1,34,000 किमी की यात्रा की. सहगल बताते हैं कि इन्हीं संगठनों के द्वारा स्थानीय मीडिया के साथ उनके साक्षात्कार आयोजित कराए जाते थे और इनके मिशन को पूरी दुनिया में प्रसिद्ध बनाया गया. इतना ही नहीं इन सारे प्रयासों की वजह से ही उनके रहने और खाने-पीने की समस्या हल हो गयी क्योंकि लोग खुले दिल से उनका स्वागत करते थे.
लेकिन इतने सारे देशों की यात्रा करने के बावजूद वह संतुष्ट नहीं है. वह कहते हैं, “ मैं 117 देशों की यात्रा करना चाहता था लेकिन 84 देश ही घूम सका. उनमें से ज्यादातर एशिया, यूरोप और अफ्रीका के थे.” उनका मानना है कि साइकिल भय से लड़ने का बहुत ही बेहतरीन माध्यम है. यह दूसरे देशों की संस्कृति को बेहतर रूप में जानने में मदद करता है. हालांकि इससे सफर करते समय कई समस्याएं सामने आती हैं लेकिन जब कोई समस्याओं को मुश्किल समझे. अगर उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाए तो इससे यात्रा करने में भरपूर आनंद मिलता है.
इस समय अमेरिका में रह रहे सहगल अपनी साइकिल यात्रा दुबारा शुरू करना चाहते है. क्योंकि वह आज के युवा वर्ग को इस तरह के अनुभव के लिए प्रेरित करना चाहते हैं. उन्हें लगता है कि आज का युवा वर्ग भारतीय संस्कृति के बारे में उतना नहीं सोचता. इसे बदलने के लिए मैं हिन्दी में गेम्स बना रहा हूं ताकि अमेरिका में भी हिन्दी भाषा के प्रति युवाओं में रूचि जगा सकू. वह खेलों के प्रति भी युवाओं को प्रोत्साहित करना चाहते हैं.
वह कहते हैं,” मुझे पूरा विश्वास कि मैं साइकिल पर एकबार फिर पूरी दुनिया घूम सकता हूं लेकिन इस बार मेरा लक्ष्य युवाओं को खेलों के लिए प्रोत्साहित करना होगा.”

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